आपातकाल: इतिहास का वो काला दिन जब लगा भारत में आपातकाल, जाने ये वजह-
The Indian Iris
6 days ago
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25 जून 1975, इतिहास का वो काला दिन जिसको कोई भी भूल नहीं सकता। 25 जून को आपातकाल के 50 साल पूरे हो रहे हैं। इसी दिन संविधान को पूरी तरह नकार दिया गया था। 25 जून 1975 को 21 महीने के लिए आपातकाल लागू किया गया था। और करीब 21 मार्च 1977 तक यह चला था। केंद्र में इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार की सिफारिश पर आपातकाल की घोषणा कर दी थी। पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के निधन होने होने के बाद देश की प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा गांधी का कुछ वजहों से न्यायपालिका के साथ टकराव शुरू हो गया था। यही टकराव आपातकाल की वजह बना।
जानिए क्यों लगा आपातकाल?
1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राज नारायण को हरा दिया था। उन्होंने इंदिरा गांधी पर सरकारी मशीनरी और संसाधनों के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में मामला दायर किया था। 12 जून 1975 हाई कोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी को दोषी माना। उनका निर्वाचन अवैध हो गया और 6 साल के लिए उनके किसी भी चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई। इसके बाद इंदिरा गांधी के पास प्रधानमंत्री का पद छोड़ने के अलावा कोई दूसरा ऑप्शन नहीं बचा था। दूसरा कारण यह भी था कि जय प्रकाश नारायण कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे और वह काफी तेजी से बढ़ रहा था। जय प्रकाश ने कोर्ट में इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद से हटने के आदेश का हवाला देकर स्टूडेंट्स, सैनिकों और पुलिस से सरकार के आदेश ना मानने का आग्रह किया।
आधी रात में लगा था आपातकाल
फिर इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। वहां पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कृष्णा अय्यर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई थी। कोर्ट ने केवल इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बने रहने की इजाजत दी। आखिरी फैसला आने तक उन्हें सांसद के तौर पर वोट डालने का अधिकार नहीं था। जिससे नाराज इंदिरा गांधी बिना कैबिनेट की मीटिंग के ही आपातकाल लगाने की सिफारिश राष्ट्रपति से कर दी। जिस पर तत्कालीन राष्ट्रपति ने 25 और 26 जून की मध्य रात्रि ही अपने साइन कर दिए। इसके बाद पूरे देश में आपातकाल लागू हो गया।
लोगों को डाला गया जेल में
आपातकाल भारत के इतिहास में एक काला दिन बन गया, क्योंकि इस दौरान मेंटेनेंस ऑफ इंटर्नल सिक्योरिटी एक्ट के तहत लोगों को जेलों में डालने की सरकार को छूट मिल गई। असहमति को सख्ती से कुचल दिया गया और नागरिक स्वतंत्रता को सरकार की ओर से रौंदने का काम किया गया। हर अखबार में एक सेंसर अधिकारी बैठा दिया गया, उसकी इजाजत के बिना कोई समाचार पत्र छप नहीं सकता था।
संविधान और लोकतंत्र का गला घोंटने की साजिश
50 साल पहले 25 जून 1975 को देर रात एक काला अध्याय लिखा गया था, जब कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने भारत के संविधान का गला घोंटते हुए लोकतंत्र को पूरी तरह समाप्त करने की साजिश रची थी। 25 जून 1975 को रात के अंधेरे में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार ने भारत के लोकतंत्र को नष्ट करने का प्रयास किया था। उस समय अटल बिहारी वाजपेई, मोरारजी देसाई, जय प्रकाश नारायण, लाल कृष्ण आडवाणी समेत विपक्ष के सभी नेताओं को जेल में बंद करके लोकतंत्र का गला घोंटने का प्रयास किया था।
आपातकाल का लोगों ने लिया बदला
21 मार्च 1977 को जब आपातकाल समाप्त हुआ तो उसके बाद 1977 में भारत के छठे लोकसभा चुनाव हुए। इस आम चुनाव में जनता ने पहली गैर कांग्रेसी सरकार को चुनकर मानो आपातकाल के दौरान हुए सभी जुल्मों का हिसाब ले लिया था। जनता ने कांग्रेस को हराकर सत्ता की चाबी जनता पार्टी के हाथों में दे दी। फिर कांग्रेस से ही अलग हुए 81 साल के मोरारजी देसाई को पहला गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री चुना गया। ये आजादी के 30 साल बाद बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी। इंदिरा गांधी खुद रायबरेली की सीट हार गईं और कांग्रेस 153 सीटों पर ही सिमट कर रह गई।
निष्कर्ष – भारत में आपातकाल
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